बढ़ती ट्रैफिक समस्या : कारण और निवारण
पिछले 20 बरसों से देश में जिस तेजी से गुणवत्ता पूर्ण सड़को के निर्माण हो रहे हैं, जिस तेजी से विभिन्न योजनाओं जैसे प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत गांवों तक में गुणवत्ता पूर्ण सडकों का जाल बिछा है, दिल्ली, मुम्बई, बंगलौर, हैदराबाद, चेन्नई अदि महानगरों से देश का हर जिला यमुख्यलाय यहाँ तक कि एक छोटा सा गांव भी सड़क मार्ग से जुड़ रहा है उसी तेजी से छोटे शहरों से लेकर देश के हर बड़े महानगरों में ट्रैफिक की समस्या में भी बेतहाशा बृद्धि हुई है। हालात दिन पर दिन और बदतर होते जा रहे हैं।
भारत के महानगरों की ट्रैफिक की व्यवस्था की तुलना में यदि हम न्यूयार्क और मेनहट्टन को देखें, जहाँ प्रतिदिन डेढ़ से दो लाख पर्यटक पहुँचते हैं, तो वहां ट्रैफिक की समस्या का प्रतिशत शून्य है। क्या मजाल है कि वहां कहीं किसी को भी ट्रैफिक में जूझना पड़े। इसी प्रकार स्विट्ज़रलैंड का ज्यूरिख, तुर्की का इस्ताम्बुल, जर्मनी का फ्रैंकफर्ट, इटली का मिलान और दुबई आदि विश्व के बड़े महानगरों में ट्रैफिक के नियमों और व्यवस्था के चलते लेश मात्र भी समस्या उत्पन्न नहीं होती। ऐसा भी नहीं है कि इन शहरों में वाहनों की कमी हो। वाहनों की संख्या और घनत्व किसी प्रकार भारत के किसी महानगर से काम नहीं है। फिर भी वहां कभी जाम की समस्या उत्पन्न नहीं होती है।
कार पार्किंग और यातायात के लिए बनाये गए नियमों का पालन करना यहां के लोग अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हैं। जबकि भारत में जहाँ-तहाँ सड़क के किनारे गाड़ी पार्क कर देना ट्राफ्फिक नियमों की अवहेलना करके अव्यवस्था को बढ़ावा देना लोग अपनी शान समझते हैं।
राजधानी दिल्ली का तो सबसे बुरा हाल है और वह भी तब जब वह देश की राजधानी है। देश के प्रधान मंत्री, राष्ट्रपति सहित सारे मंत्री, राजनेता, बयूरोक्रेट्स के बड़े अधिकारियों के कार्यालयों के अलावा विदेशों के उच्चायुक्तों के भी कार्यालय हैं। दिल्ली सरकार ने पिछले दिनों ट्रैफिक की समस्या से निजात पाने के लिए ऑड और इवन फार्मूला लागू किया था लेकिन गाड़ियों की बढ़ती भीड़ के कारण यह फार्मूला भी कुछ विशेष रहत नहीं दिला सका।
दरअसल समस्या का मूल 'व्यवस्था में कमी' नहीं है बल्कि उपलब्ध व्यवस्था का उचित पालन न होना है। आज हर आदमी कार खरीदना चाहता है इसके लिए बैंक उसे आसान किश्तों पर ऋण भी उपलब्ध करा देते हैं लेकिन सड़कों के अनुपात में कारों की संख्या की वृद्धि के कारण यातायात की समस्या की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा अथवा जिम्मेदार विभाग या नेतृत्व इस ओर ध्यान देना नहीं चाहते। वाहनों की बढ़ती भीड़ ने केवल ट्रैफिक की समस्या को ही जन्म नहीं दिया वरन ध्वनि और वायु प्रदूषण में होने वाली वृद्धि का मूल कारण भी यही है।
एक से अधिक कारों का मालिक होना एक आम भारतीय के लिए गर्व का विषय होता है। साथ ही इसे स्टेटस सिम्बल के तौर पर भी देखा जाता है। वह यह भूल जाता है कि ट्रैफिक की समस्या को बढ़ने में उसका यही स्टेटस सिम्बल भी हिस्सेदार है। देश का उच्च वर्ग,उच्च-मध्यम वर्ग, मध्यम वर्ग यदि अपनी नैतिक जिम्मेदारी नहीं समझता तो सरकार को चाहिए वह इस दिशा में नए क़ानून पारित करे और उसको अमल में लाने के लिए कठोरता से प्रयास भी।
दिल्ली स्थित सभी 544 सांसदों और राज्य सभा के साभी सदस्यों के बंगलों के बाहर 5 से 7 गाड़ियों का काफिला दिख जायेगा। आज से 20 वर्ष पहले इक्का दुक्का गाड़ियां ही खड़ी दिखती थीं। एक आम सांसद की अपेक्षा कैबिनेट के किसी मंत्री के बंगले के बाहर अधिक गाड़ियां खड़ी रहती हैं इनमें से अधिकतर उपहार में मिली होती हैं। मंत्री बने नहीं कि गाड़ियां उपहार में मिलने लगती हैं। इस प्रकार अनावश्यक रूप से होने वाली वाहनों की वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को नए सिरे से सोचना होगा। इस देश में एक से अधिक गाड़ियां रखने के लोगों के शौक ने यहाँ ट्रैफिक की व्यवस्था को चरमरा कर रख दिया है।
आंकड़े बताते हैं कि पिछले 20 वर्षों से जिस तेजी से वाहनों की वृद्धि हुई है उतनी ही तेजी से सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में भी इज़ाफ़ा हुआ है। अभी कुछ ही दिनों पहले परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि देश भर में प्रतिदिन 400 मौतें सड़क दुर्घटना से होती हैं। उनके बयान की पुष्टि ज़ी न्यूज़ ने भी एक सर्वेक्षण का हवाला देकर किया था। जिस देश में प्रतिदिन 400 मौतें, अर्थात एक साल में 1 लाख 46 हज़ार लोग सड़क दुर्घटना में असमय प्राण गँवा देते हों उस देश की सड़क परिवहन की दुर्दशा और यातायात के नियमों के पालन की स्थिति को बखूबी समझा जा सकता है।
वाहनों की बढ़ती भीड़ के कारण उनके पार्किंग की भी एक बड़ी समस्या है। महानगरों की बढ़ती आबादी और गगनचुम्बी इमारतों के हो रहे बेतहाशा और बेतरतीब निर्माण के चलते उन इमारतों में रहनेवाले अधिकांश लोगों को उनकी गाड़ियों को खड़ी करने की जगह नहीं है। ऐसे में सड़क के किनारे जहाँ तहँ गाड़ियां पार्क कर दी जाती हैं जिससे यातायात अवरुद्ध होता है।
छोटे शहरों से लेकर बड़े महानगरों के आरटीओ दफ्तर में प्रतिवर्ष लाखों वाहन रजिस्टर्ड किये जाते हैं। महानगरों के आरटीओ अधिकारी बिना इस तथ्य पर विचार किये कि उस व्यक्ति के पास वाहन खड़ा करने के लिए पर्याप्त जगह है या नहीं या बढ़ रहे वाहनों की संख्या के चलते उत्पन्न होने वाली ट्रैफिक समस्या से निपटने का सरकार के पास कोई उपाय है या नहीं, वाहनों को रजिस्ट्रेशन प्रमाण-पत्र जारी कर दिया जाता है। यह सरकार की जवाबदेही बनती है कि जिस अनुपात में वह कारों और अन्य वाहनों को लाइसेंस प्रदान करती है उसी अनुपात में उनके परिवहन और पार्किंग की व्यवस्था को भी सुनिश्चित करे। एक तरफ किराये के वाहनों, टैक्सियों इत्यादि के लिए 15 से 20 वर्ष की समयावधि सरकार ने तय कर रखी है, वहीं दूसरी ओर प्राइवेट वाहनों के लिए किसी प्रकार की कोई समय सीमा नहीं है। पुरानी प्राइवेट कारों का परिचालन बंद नहीं किया जाना और नयी कारों को प्रमाण-पत्र जारी करते रहना सरकार की अदूरदर्शिता ही कही जायेगी।
महानगरों की स्थिति तो यह है कि फाइव स्टार होटलों, क्लबों में उच्चवर्ग द्वारा आयोजित किसी समारोह जैसे शादी इत्यादि में आने वाले मेहमानों की कारों से सडकों की यातायात व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाती है। साथ ही इसका असर भी दूर तक होता है। मुम्बई के ताज या ओबेराय होटलों में होने वाले किसी समारोह के कारण कर पार्किंग की अव्यवस्था का असर गिरगांव चौपाटी तक देखा जा सकता है। इसी प्रकार सन एंड सन, नोवा, सी-प्रिंसेस आदि होटलों में आयोजित किसी समारोह के कारण जुहू की पूरी जनता को ट्रैफिक की भयंकर समस्या का सामना करना पड़ता है। इसी प्रकार दिल्ली के पांच सितारा होटलों ओबेरॉय, हयात कांटिनेंटल आदि का भी यही हाल है।और तो और प्रधान मंत्री के रेसकोर्स स्थित निवास से सटे दिल्ली जिमखाना क्लब की पार्किंग व्यवस्था सप्ताह के तीन पूरी तरह अव्यवस्थित हो उठती है। यह अव्यवस्था भी उनके द्वारा फैलायी जाती है जिनके कन्धों पर इस देश की व्यवस्था को बनाये रखने का भार होता है। लोकतंत्र के उच्चपदस्थ अधिकारी, जज और बड़े उद्योगपति जैसे लोग इस क्लब के सदस्य हैं। इस अव्यवस्था का असर प्रधान मंत्री निवास तक होता है। क्या अब तक किसी भी प्रधान मंत्री का ध्यान कभी इस ओर नहीं गया ?
देश में बढ़ रही ट्रैफिक की समस्या से निपटने के लिए कुछ मुख्य बातों पर सरकार को ध्यान देना होगा। सबसे पहले वाहनों की बढ़ रही संख्या पर अंकुश लगाना होगा। इसके लिए एक घर एक कार की व्यवस्था को लागू करना होगा। हालाँकि मुम्बई में इस सूत्र पर चर्चाएं गरम हैं लेकिन अभी कोई बयान या निर्णय सरकार की तरफ से नहीं आया है। दूसरा यह कि महानगरों में बनने वाली ऊंची इमारतों के निर्माण की अनुमति तब तक नहीं दी जाये जब इनमें पार्किंग की समुचित और संपूर्ण व्यवस्था न हो। यदि एक घर या एक फ्लैट में एक या अधिक से अधिक दो कारों का नियम लागू किया जाये तो ट्रैफिक की समस्या से 40 प्रतिशत तक निज़ात पाया जा सकता है। यही स्थिति सडकों के किनारे बनी पार्किंग की जगहों की है। हकीक़त में सड़क के किनारे कार पार्किंग की जगह सम्बंधित अधिकारियों के लिए अवैध कमाई का जरिया बन गया है। महानगरों में बिल्डिगों की सोसाइटी के लोगों ने पार्किंग के नाम पर बड़ी धांधलियां कर रखी हैं। इन सबकी जाँच करायी जानी चाहिए। पार्किंग की जगहों पर किये गये अवैध निर्माण को ध्वस्त करके पार्किंग की व्यवस्था को बहाल किया जाना चाहिए।
देश भर में कहीं भी कोई आम या खास व्यक्ति आपातकाल में जब ट्रैफिक में फंसता है अथवा एम्बुलेन्स में अस्पताल जा रहा मरीज ट्रैफिक के कारण रास्ते में ही दम तोड़ देता है तो देश के हर नागरिक को जीने का अधिकार प्रदान करने वाले संवैधानिक व्यवस्था पर सवाल उठना लाज़िमी है। पीड़ित व्यक्ति देश के शीर्ष नेतृत्व को ही कोसता है।
अतः मैं देश के माननीय प्रधान मंत्री का ध्यान इस ओर आकृष्ट करते हुए निवेदन करना चाहता हूँ कि देश के महानगरों में ही नहीं बल्कि छोटे छोटे शहरों तक में लगातार बढ़ रही ट्रैफिक की समस्या से समय रहते निजात पाने के लिए शीघ्र से शीघ्र अलग से क़ानून बनाये जाने की आवश्यकता पर ध्यान दें। वरना आने वाले समय में यह समस्या इतनी विकराल रूप धारण कर लेगी कि कोई भी उपाय इसे सुधार नहीं सकेगा।
भारत के महानगरों की ट्रैफिक की व्यवस्था की तुलना में यदि हम न्यूयार्क और मेनहट्टन को देखें, जहाँ प्रतिदिन डेढ़ से दो लाख पर्यटक पहुँचते हैं, तो वहां ट्रैफिक की समस्या का प्रतिशत शून्य है। क्या मजाल है कि वहां कहीं किसी को भी ट्रैफिक में जूझना पड़े। इसी प्रकार स्विट्ज़रलैंड का ज्यूरिख, तुर्की का इस्ताम्बुल, जर्मनी का फ्रैंकफर्ट, इटली का मिलान और दुबई आदि विश्व के बड़े महानगरों में ट्रैफिक के नियमों और व्यवस्था के चलते लेश मात्र भी समस्या उत्पन्न नहीं होती। ऐसा भी नहीं है कि इन शहरों में वाहनों की कमी हो। वाहनों की संख्या और घनत्व किसी प्रकार भारत के किसी महानगर से काम नहीं है। फिर भी वहां कभी जाम की समस्या उत्पन्न नहीं होती है।
कार पार्किंग और यातायात के लिए बनाये गए नियमों का पालन करना यहां के लोग अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हैं। जबकि भारत में जहाँ-तहाँ सड़क के किनारे गाड़ी पार्क कर देना ट्राफ्फिक नियमों की अवहेलना करके अव्यवस्था को बढ़ावा देना लोग अपनी शान समझते हैं।
राजधानी दिल्ली का तो सबसे बुरा हाल है और वह भी तब जब वह देश की राजधानी है। देश के प्रधान मंत्री, राष्ट्रपति सहित सारे मंत्री, राजनेता, बयूरोक्रेट्स के बड़े अधिकारियों के कार्यालयों के अलावा विदेशों के उच्चायुक्तों के भी कार्यालय हैं। दिल्ली सरकार ने पिछले दिनों ट्रैफिक की समस्या से निजात पाने के लिए ऑड और इवन फार्मूला लागू किया था लेकिन गाड़ियों की बढ़ती भीड़ के कारण यह फार्मूला भी कुछ विशेष रहत नहीं दिला सका।
दरअसल समस्या का मूल 'व्यवस्था में कमी' नहीं है बल्कि उपलब्ध व्यवस्था का उचित पालन न होना है। आज हर आदमी कार खरीदना चाहता है इसके लिए बैंक उसे आसान किश्तों पर ऋण भी उपलब्ध करा देते हैं लेकिन सड़कों के अनुपात में कारों की संख्या की वृद्धि के कारण यातायात की समस्या की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा अथवा जिम्मेदार विभाग या नेतृत्व इस ओर ध्यान देना नहीं चाहते। वाहनों की बढ़ती भीड़ ने केवल ट्रैफिक की समस्या को ही जन्म नहीं दिया वरन ध्वनि और वायु प्रदूषण में होने वाली वृद्धि का मूल कारण भी यही है।
एक से अधिक कारों का मालिक होना एक आम भारतीय के लिए गर्व का विषय होता है। साथ ही इसे स्टेटस सिम्बल के तौर पर भी देखा जाता है। वह यह भूल जाता है कि ट्रैफिक की समस्या को बढ़ने में उसका यही स्टेटस सिम्बल भी हिस्सेदार है। देश का उच्च वर्ग,उच्च-मध्यम वर्ग, मध्यम वर्ग यदि अपनी नैतिक जिम्मेदारी नहीं समझता तो सरकार को चाहिए वह इस दिशा में नए क़ानून पारित करे और उसको अमल में लाने के लिए कठोरता से प्रयास भी।
दिल्ली स्थित सभी 544 सांसदों और राज्य सभा के साभी सदस्यों के बंगलों के बाहर 5 से 7 गाड़ियों का काफिला दिख जायेगा। आज से 20 वर्ष पहले इक्का दुक्का गाड़ियां ही खड़ी दिखती थीं। एक आम सांसद की अपेक्षा कैबिनेट के किसी मंत्री के बंगले के बाहर अधिक गाड़ियां खड़ी रहती हैं इनमें से अधिकतर उपहार में मिली होती हैं। मंत्री बने नहीं कि गाड़ियां उपहार में मिलने लगती हैं। इस प्रकार अनावश्यक रूप से होने वाली वाहनों की वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को नए सिरे से सोचना होगा। इस देश में एक से अधिक गाड़ियां रखने के लोगों के शौक ने यहाँ ट्रैफिक की व्यवस्था को चरमरा कर रख दिया है।
आंकड़े बताते हैं कि पिछले 20 वर्षों से जिस तेजी से वाहनों की वृद्धि हुई है उतनी ही तेजी से सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में भी इज़ाफ़ा हुआ है। अभी कुछ ही दिनों पहले परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि देश भर में प्रतिदिन 400 मौतें सड़क दुर्घटना से होती हैं। उनके बयान की पुष्टि ज़ी न्यूज़ ने भी एक सर्वेक्षण का हवाला देकर किया था। जिस देश में प्रतिदिन 400 मौतें, अर्थात एक साल में 1 लाख 46 हज़ार लोग सड़क दुर्घटना में असमय प्राण गँवा देते हों उस देश की सड़क परिवहन की दुर्दशा और यातायात के नियमों के पालन की स्थिति को बखूबी समझा जा सकता है।
वाहनों की बढ़ती भीड़ के कारण उनके पार्किंग की भी एक बड़ी समस्या है। महानगरों की बढ़ती आबादी और गगनचुम्बी इमारतों के हो रहे बेतहाशा और बेतरतीब निर्माण के चलते उन इमारतों में रहनेवाले अधिकांश लोगों को उनकी गाड़ियों को खड़ी करने की जगह नहीं है। ऐसे में सड़क के किनारे जहाँ तहँ गाड़ियां पार्क कर दी जाती हैं जिससे यातायात अवरुद्ध होता है।
छोटे शहरों से लेकर बड़े महानगरों के आरटीओ दफ्तर में प्रतिवर्ष लाखों वाहन रजिस्टर्ड किये जाते हैं। महानगरों के आरटीओ अधिकारी बिना इस तथ्य पर विचार किये कि उस व्यक्ति के पास वाहन खड़ा करने के लिए पर्याप्त जगह है या नहीं या बढ़ रहे वाहनों की संख्या के चलते उत्पन्न होने वाली ट्रैफिक समस्या से निपटने का सरकार के पास कोई उपाय है या नहीं, वाहनों को रजिस्ट्रेशन प्रमाण-पत्र जारी कर दिया जाता है। यह सरकार की जवाबदेही बनती है कि जिस अनुपात में वह कारों और अन्य वाहनों को लाइसेंस प्रदान करती है उसी अनुपात में उनके परिवहन और पार्किंग की व्यवस्था को भी सुनिश्चित करे। एक तरफ किराये के वाहनों, टैक्सियों इत्यादि के लिए 15 से 20 वर्ष की समयावधि सरकार ने तय कर रखी है, वहीं दूसरी ओर प्राइवेट वाहनों के लिए किसी प्रकार की कोई समय सीमा नहीं है। पुरानी प्राइवेट कारों का परिचालन बंद नहीं किया जाना और नयी कारों को प्रमाण-पत्र जारी करते रहना सरकार की अदूरदर्शिता ही कही जायेगी।
महानगरों की स्थिति तो यह है कि फाइव स्टार होटलों, क्लबों में उच्चवर्ग द्वारा आयोजित किसी समारोह जैसे शादी इत्यादि में आने वाले मेहमानों की कारों से सडकों की यातायात व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाती है। साथ ही इसका असर भी दूर तक होता है। मुम्बई के ताज या ओबेराय होटलों में होने वाले किसी समारोह के कारण कर पार्किंग की अव्यवस्था का असर गिरगांव चौपाटी तक देखा जा सकता है। इसी प्रकार सन एंड सन, नोवा, सी-प्रिंसेस आदि होटलों में आयोजित किसी समारोह के कारण जुहू की पूरी जनता को ट्रैफिक की भयंकर समस्या का सामना करना पड़ता है। इसी प्रकार दिल्ली के पांच सितारा होटलों ओबेरॉय, हयात कांटिनेंटल आदि का भी यही हाल है।और तो और प्रधान मंत्री के रेसकोर्स स्थित निवास से सटे दिल्ली जिमखाना क्लब की पार्किंग व्यवस्था सप्ताह के तीन पूरी तरह अव्यवस्थित हो उठती है। यह अव्यवस्था भी उनके द्वारा फैलायी जाती है जिनके कन्धों पर इस देश की व्यवस्था को बनाये रखने का भार होता है। लोकतंत्र के उच्चपदस्थ अधिकारी, जज और बड़े उद्योगपति जैसे लोग इस क्लब के सदस्य हैं। इस अव्यवस्था का असर प्रधान मंत्री निवास तक होता है। क्या अब तक किसी भी प्रधान मंत्री का ध्यान कभी इस ओर नहीं गया ?
देश में बढ़ रही ट्रैफिक की समस्या से निपटने के लिए कुछ मुख्य बातों पर सरकार को ध्यान देना होगा। सबसे पहले वाहनों की बढ़ रही संख्या पर अंकुश लगाना होगा। इसके लिए एक घर एक कार की व्यवस्था को लागू करना होगा। हालाँकि मुम्बई में इस सूत्र पर चर्चाएं गरम हैं लेकिन अभी कोई बयान या निर्णय सरकार की तरफ से नहीं आया है। दूसरा यह कि महानगरों में बनने वाली ऊंची इमारतों के निर्माण की अनुमति तब तक नहीं दी जाये जब इनमें पार्किंग की समुचित और संपूर्ण व्यवस्था न हो। यदि एक घर या एक फ्लैट में एक या अधिक से अधिक दो कारों का नियम लागू किया जाये तो ट्रैफिक की समस्या से 40 प्रतिशत तक निज़ात पाया जा सकता है। यही स्थिति सडकों के किनारे बनी पार्किंग की जगहों की है। हकीक़त में सड़क के किनारे कार पार्किंग की जगह सम्बंधित अधिकारियों के लिए अवैध कमाई का जरिया बन गया है। महानगरों में बिल्डिगों की सोसाइटी के लोगों ने पार्किंग के नाम पर बड़ी धांधलियां कर रखी हैं। इन सबकी जाँच करायी जानी चाहिए। पार्किंग की जगहों पर किये गये अवैध निर्माण को ध्वस्त करके पार्किंग की व्यवस्था को बहाल किया जाना चाहिए।
देश भर में कहीं भी कोई आम या खास व्यक्ति आपातकाल में जब ट्रैफिक में फंसता है अथवा एम्बुलेन्स में अस्पताल जा रहा मरीज ट्रैफिक के कारण रास्ते में ही दम तोड़ देता है तो देश के हर नागरिक को जीने का अधिकार प्रदान करने वाले संवैधानिक व्यवस्था पर सवाल उठना लाज़िमी है। पीड़ित व्यक्ति देश के शीर्ष नेतृत्व को ही कोसता है।
अतः मैं देश के माननीय प्रधान मंत्री का ध्यान इस ओर आकृष्ट करते हुए निवेदन करना चाहता हूँ कि देश के महानगरों में ही नहीं बल्कि छोटे छोटे शहरों तक में लगातार बढ़ रही ट्रैफिक की समस्या से समय रहते निजात पाने के लिए शीघ्र से शीघ्र अलग से क़ानून बनाये जाने की आवश्यकता पर ध्यान दें। वरना आने वाले समय में यह समस्या इतनी विकराल रूप धारण कर लेगी कि कोई भी उपाय इसे सुधार नहीं सकेगा।