देश की चिकित्सा प्रणाली
भारत की चिकित्सकीय प्रणाली का आधारभूत ढांचा और और डॉक्टरों की पेशागत निष्ठा तथा में जरा भी अंतर नज़र नहीं आता। दोनों ही संवेदनहीन और गरीब आदमी की पहुँच से बहुत दूर। किसी जानलेवा गंभीर रोग से ग्रस्त एक गरीब आदमी मर तो सकता है लेकिन एम्स या अपोलो जैसे अत्यधुनिक चिकित्सा सुविधाओं से युक्त किसी अस्पताल में वह अपना इलाज़ नहीं करवा सकता। यह उसकी पहुँच से दूर बहुत दूर की बात है।
३० वर्ष से ऊपर के सभी नागरिकों को सम्पूर्ण मेडिकल जाँच करवाने का बयान जारी करनेवाला देश का स्वास्थ्य मंत्रालय सरकारी अस्पतालों में जांच सुविधाओं के अकाल पर खामोश है। जहाँ ये सुविधा है वहां अक्सर जाँच उपकरणों का बंद पड़े रहना आम बात है। इसके अलावा कर्मचारियों और डॉक्टरों के असहयोगात्मक रवैये के चलते गरीब इन अस्पतालों से निराश हताश होकर प्राइवेट डॉक्टर की शरण में जाकर शोषित होने के बाध्य हो जाता है। हकीकत तो यह है कि स्वास्थ्य मंत्रालय के बड़े जिम्मेदार लोगों के लिए यह विभाग सोने की अंडा देने वाली मुर्गी की तरह है।
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने एक वक्तव्य में कहा था कि हमारे गांव स्वस्थ और स्वच्छ होंगे तो हमारे शहर स्वस्थ होंगे और शहर स्वस्थ होंगे तो देश के महानगर स्वस्थ और समृद्ध होंगे। उनके इस कथन में गांव के गरीब खेतिहर किसान से लेकर सभी श्रमजीवियों को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करने का संकेत है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि देश के स्वास्थ्य मंत्रालय से लेकर चिकित्सा विभाग से जुड़े प्रत्येक जिम्मेदार अधिकारी की नज़र में गांव के गरीब किसान और मजदूर उच्च चिकित्सा सुविधा प्राप्त करने के काबिल नहीं है। ग्रामीण जनता को प्राथमिक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करने का प्रावधान है लेकिन अभी तक देश के आधे से अधिक गांवों में यह सुविधा उपलब्ध नहीं हो पायी है। जहाँ स्वास्थ्य केंद्र बने भी वे अपने निर्माण के ५वें वर्ष में ही खँडहर में तब्दील हो गये। दरअसल इन स्वास्थ्य भवनों की बदहाली के लिए कुछ हद तक ग्रमीण जनता भी जिम्मेदार हैं। कर्मचारियों से रहित ये खली पड़े भवन गांव वालों के लिए पशुओं को बांधने तथा भूसा इत्यादि रखने के काम आने लगे। इन केंद्रों पर तैनात स्वास्थ्य कर्मचारियों में से अधिकांश ने तो अपनी नियुक्ति की जगह को देखा तक नहीं होगा।
हर गांव के प्रत्येक नागरिक को उचित चिकित्सा सुविधा प्राप्त हो और इसमें किसी प्राइवेट और झोला छाप डॉक्टरों की, जो गरीब किसानों और मजदूरों का न केवल आर्थिक शोषण करते हैं वरन उन्हें असमय मौत के मुंह में धकेलने के अपराधी भी होते हैं, बिलकुल दखलंदाज़ी न हो, इसके लिए सरकार को नियमों का कठोरता से पालन करवाने और फ़र्ज़ में कोताही बरतने पर सख्त कार्रवाई करने के प्रावधान को सुनिश्चित करना होगा। साथ ही गांव-गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और इन केंद्रों पर स्वास्थ्य कर्मचारियों तथा डॉक्टरों की नियुक्ति पर भी प्राथमिकता से ध्यान देना होगा।
प्रत्येक ५ हज़ार की आबादी पर एक्स-रे, सोनोग्राफी, पैथोलॉजी इत्यादि चिकित्सकीय जाँच से सम्बंधित सारी सुविधाओं से युक्त तथा महिलाओं की डिलीवरी से सम्बंधित सभी आवश्यक साजो-सामान से युक्त एक प्राथमिक चिकित्सा केंद्र तथा नगर पालिका क्षेत्र अथवा २० हज़ार की आबादी पर २०० बिस्तरों वाला आधुनिक चिकित्सा तकनीक से युक्त अस्पताल स्थापित करना होगा। नगर पालिका तथा ग्राम पंचायत स्तर पर प्राइवेट डॉक्टरों की सेवा को पूरी तरह प्रतिबंधित कर देना होगा, तभी आधुनिक भारत का निर्माण संभव है।
देश के प्रत्येक जनपद में एक समान सुविधाओं वाला तथा कम से कम ११०० बिस्तरों वाला मेडिकल कॉलेज, जिनमें एम्स, अपोलो इत्यादि जैसे अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हों, स्थापित किये जायें तो औसतन जनपद के प्रत्येक नागरिक को उचित चिकित्सा सुविधा मुहैया हो सकेगी। इन सभी मेडिकल कॉलेजों में ११०० डॉक्टर यदि मेडिकल शिक्षा प्रदान करेंगें तो प्रतिवर्ष लगभग ६ लाख नये डॉक्टर देश को मिल सकेंगे। इस हिसाब से महज १० वर्षों में ही प्रति २५० व्यक्ति के लिए एक डॉक्टर उपलब्ध हो जायेगा।
दुनिया के कई देशों की सरकारें अपने देश में मेडिकल की पढाई करने वाले छात्रों को प्रोत्साहन और मदद देती हैं। चीन, तुर्की, कनाडा, यूरोप के सभी देशों की सरकारें यह सुविधा उपलब्ध कराती हैं। जबकि भारत में मेडिकल की शिक्षा लेने के इच्छुक छात्रों को १ से १.५ करोड़ रुपये की रिश्वत देनी ही पड़ती है। प्राइवेट कॉलेजों में यह रिश्वत डोनेशन के नाम पर ली जाती है। मंत्रियों, बड़े नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स के बड़े अफसरों द्वारा संचालित ये मेडिकल कॉलेज प्रतिवर्ष २०० से ३०० करोड़ रुपये की रिश्वत डोनेशन के नाम पर ब्लैक मनी के रूप में जमा करते हैं। यही हाल डेंटल कॉलेजों की है। हालाँकि डेंटल कॉलेजों द्वारा ली जाने वाली यह रकम अपेक्षानुसार कम होती है। १० से १५ लाख रुपये की रिश्वत डोनेशन के नाम पर लेकर छात्रों को एडमिशन दे देते हैं। एक मोटे अनुमान के मुताबिक ३० हज़ार करोड़ रुपये काले धन के रूप में प्रतिवर्ष इन कालेजों में जमा होते हैं।
इस रिश्वतखोरी पर रोक लगाने का एक ही उपाय है कि सरकार मेडिकल की शिक्षा की पूरी व्यवस्था उपलब्ध कराये और बिना किसी भेदभाव के योग्य छात्रों को एडमिशन देने की प्रक्रिया को निर्धारित करे। रिश्वत देकर पढाई करने वाला छात्र डॉक्टर बनने के बाद रिश्वत दी गयी रकम का कई गुना प्राप्त करने की सोचता है। इसके लिए वह अपनी पेशागत निष्ठा को ताक पर रख देता है। वह गांवों का नहीं बल्कि बड़े महानगरों का रुख करता है, जहाँ वह महँगी फीस और अन्य कमीशन के रूप में कमाई करता है।
ऐसा भी नहीं है कि यह बीमार चिकित्सा प्रणाली किसी को नज़र नहीं आती हो, आती है, लेकिन शासन तथा नीति निर्माताओं की उदासीनता और उनका निजी स्वार्थ इस सिस्टम को सुधरने से रोक देता है। देश का गरीब आदमी महँगे इलाज और महँगे टेस्ट के चलते अच्छे डॉक्टर तक नहीं पहुँच पाता। वह इलाज के अभाव में दम तोड़ने के लिए अभिशप्त है। हमारे देश में ही डेंगू और मलेरिया से क्यों अधिक मौतें होती हैं इस पर किसी ने कभी ध्यान नहीं दिया। पश्चिम के देशों में भी यह बीमारी होती है लेकिन तुरंत और उचित चिकित्सा उपलब्ध होने के कारण इस बीमारी से वहां कोई मौत नहीं होती। जबकि हमारे देश में ऐसा नहीं है। गंभीर रोगों को छोड़ दिया जाये तो यहाँ अधिकांश बीमारी दूषित जल, नकली तेल, घी, मसाले और घातक रसायनों की मिलावट वाले खाद्य पदार्थों के सेवन से होती है। ऐसे में गांवों, शहरों और महानगरों को स्वस्थ बनाने का प्रधान मंत्री का सपना महज़ सपना ही लगता है।
अभी हाल ही में सरकार ने प्रत्येक गरीब को ३ लाख रुपये का चिकित्सा बीमा उपलब्ध कराने का वादा किया है। यह भी प्राइवेट अस्पतालों के लिए अवैध कमाई का एक और जरिया बननेवाला है। कागजों में फर्जी मरीज दिखाकर अथवा अधिक से अधिक अनाप-शनाप बिल बनाकर यह सारी रकम वसूल लेंगे। इसलिए इस बीमा पॉलिसी के तहत इलाज़ कराने वाले मरीजों की बीमा क्लेम से पहले ही जांच की जानी चाहिए। किसी सरकारी जांच एजेंसी से जांच कराना यदि संभव नहीं हो तो अन्य गैर सरकारी सेवाभावी संगठनों आरएसएस अथवा कांग्रेस सेवादल के कार्यकर्ताओं से करा सकते हैं। यदि इस ओर तुरंत ध्यान नहीं दिया गया तो यह भी आनेवाले समय में एक महाघोटाला साबित होगा और एक स्वच्छ और ईमानदार छवि वाले प्रधान मंत्री के दामन में दाग बनकर उभरेगा।
३० वर्ष से ऊपर के सभी नागरिकों को सम्पूर्ण मेडिकल जाँच करवाने का बयान जारी करनेवाला देश का स्वास्थ्य मंत्रालय सरकारी अस्पतालों में जांच सुविधाओं के अकाल पर खामोश है। जहाँ ये सुविधा है वहां अक्सर जाँच उपकरणों का बंद पड़े रहना आम बात है। इसके अलावा कर्मचारियों और डॉक्टरों के असहयोगात्मक रवैये के चलते गरीब इन अस्पतालों से निराश हताश होकर प्राइवेट डॉक्टर की शरण में जाकर शोषित होने के बाध्य हो जाता है। हकीकत तो यह है कि स्वास्थ्य मंत्रालय के बड़े जिम्मेदार लोगों के लिए यह विभाग सोने की अंडा देने वाली मुर्गी की तरह है।
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने एक वक्तव्य में कहा था कि हमारे गांव स्वस्थ और स्वच्छ होंगे तो हमारे शहर स्वस्थ होंगे और शहर स्वस्थ होंगे तो देश के महानगर स्वस्थ और समृद्ध होंगे। उनके इस कथन में गांव के गरीब खेतिहर किसान से लेकर सभी श्रमजीवियों को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करने का संकेत है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि देश के स्वास्थ्य मंत्रालय से लेकर चिकित्सा विभाग से जुड़े प्रत्येक जिम्मेदार अधिकारी की नज़र में गांव के गरीब किसान और मजदूर उच्च चिकित्सा सुविधा प्राप्त करने के काबिल नहीं है। ग्रामीण जनता को प्राथमिक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करने का प्रावधान है लेकिन अभी तक देश के आधे से अधिक गांवों में यह सुविधा उपलब्ध नहीं हो पायी है। जहाँ स्वास्थ्य केंद्र बने भी वे अपने निर्माण के ५वें वर्ष में ही खँडहर में तब्दील हो गये। दरअसल इन स्वास्थ्य भवनों की बदहाली के लिए कुछ हद तक ग्रमीण जनता भी जिम्मेदार हैं। कर्मचारियों से रहित ये खली पड़े भवन गांव वालों के लिए पशुओं को बांधने तथा भूसा इत्यादि रखने के काम आने लगे। इन केंद्रों पर तैनात स्वास्थ्य कर्मचारियों में से अधिकांश ने तो अपनी नियुक्ति की जगह को देखा तक नहीं होगा।
हर गांव के प्रत्येक नागरिक को उचित चिकित्सा सुविधा प्राप्त हो और इसमें किसी प्राइवेट और झोला छाप डॉक्टरों की, जो गरीब किसानों और मजदूरों का न केवल आर्थिक शोषण करते हैं वरन उन्हें असमय मौत के मुंह में धकेलने के अपराधी भी होते हैं, बिलकुल दखलंदाज़ी न हो, इसके लिए सरकार को नियमों का कठोरता से पालन करवाने और फ़र्ज़ में कोताही बरतने पर सख्त कार्रवाई करने के प्रावधान को सुनिश्चित करना होगा। साथ ही गांव-गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और इन केंद्रों पर स्वास्थ्य कर्मचारियों तथा डॉक्टरों की नियुक्ति पर भी प्राथमिकता से ध्यान देना होगा।
प्रत्येक ५ हज़ार की आबादी पर एक्स-रे, सोनोग्राफी, पैथोलॉजी इत्यादि चिकित्सकीय जाँच से सम्बंधित सारी सुविधाओं से युक्त तथा महिलाओं की डिलीवरी से सम्बंधित सभी आवश्यक साजो-सामान से युक्त एक प्राथमिक चिकित्सा केंद्र तथा नगर पालिका क्षेत्र अथवा २० हज़ार की आबादी पर २०० बिस्तरों वाला आधुनिक चिकित्सा तकनीक से युक्त अस्पताल स्थापित करना होगा। नगर पालिका तथा ग्राम पंचायत स्तर पर प्राइवेट डॉक्टरों की सेवा को पूरी तरह प्रतिबंधित कर देना होगा, तभी आधुनिक भारत का निर्माण संभव है।
देश के प्रत्येक जनपद में एक समान सुविधाओं वाला तथा कम से कम ११०० बिस्तरों वाला मेडिकल कॉलेज, जिनमें एम्स, अपोलो इत्यादि जैसे अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हों, स्थापित किये जायें तो औसतन जनपद के प्रत्येक नागरिक को उचित चिकित्सा सुविधा मुहैया हो सकेगी। इन सभी मेडिकल कॉलेजों में ११०० डॉक्टर यदि मेडिकल शिक्षा प्रदान करेंगें तो प्रतिवर्ष लगभग ६ लाख नये डॉक्टर देश को मिल सकेंगे। इस हिसाब से महज १० वर्षों में ही प्रति २५० व्यक्ति के लिए एक डॉक्टर उपलब्ध हो जायेगा।
दुनिया के कई देशों की सरकारें अपने देश में मेडिकल की पढाई करने वाले छात्रों को प्रोत्साहन और मदद देती हैं। चीन, तुर्की, कनाडा, यूरोप के सभी देशों की सरकारें यह सुविधा उपलब्ध कराती हैं। जबकि भारत में मेडिकल की शिक्षा लेने के इच्छुक छात्रों को १ से १.५ करोड़ रुपये की रिश्वत देनी ही पड़ती है। प्राइवेट कॉलेजों में यह रिश्वत डोनेशन के नाम पर ली जाती है। मंत्रियों, बड़े नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स के बड़े अफसरों द्वारा संचालित ये मेडिकल कॉलेज प्रतिवर्ष २०० से ३०० करोड़ रुपये की रिश्वत डोनेशन के नाम पर ब्लैक मनी के रूप में जमा करते हैं। यही हाल डेंटल कॉलेजों की है। हालाँकि डेंटल कॉलेजों द्वारा ली जाने वाली यह रकम अपेक्षानुसार कम होती है। १० से १५ लाख रुपये की रिश्वत डोनेशन के नाम पर लेकर छात्रों को एडमिशन दे देते हैं। एक मोटे अनुमान के मुताबिक ३० हज़ार करोड़ रुपये काले धन के रूप में प्रतिवर्ष इन कालेजों में जमा होते हैं।
इस रिश्वतखोरी पर रोक लगाने का एक ही उपाय है कि सरकार मेडिकल की शिक्षा की पूरी व्यवस्था उपलब्ध कराये और बिना किसी भेदभाव के योग्य छात्रों को एडमिशन देने की प्रक्रिया को निर्धारित करे। रिश्वत देकर पढाई करने वाला छात्र डॉक्टर बनने के बाद रिश्वत दी गयी रकम का कई गुना प्राप्त करने की सोचता है। इसके लिए वह अपनी पेशागत निष्ठा को ताक पर रख देता है। वह गांवों का नहीं बल्कि बड़े महानगरों का रुख करता है, जहाँ वह महँगी फीस और अन्य कमीशन के रूप में कमाई करता है।
ऐसा भी नहीं है कि यह बीमार चिकित्सा प्रणाली किसी को नज़र नहीं आती हो, आती है, लेकिन शासन तथा नीति निर्माताओं की उदासीनता और उनका निजी स्वार्थ इस सिस्टम को सुधरने से रोक देता है। देश का गरीब आदमी महँगे इलाज और महँगे टेस्ट के चलते अच्छे डॉक्टर तक नहीं पहुँच पाता। वह इलाज के अभाव में दम तोड़ने के लिए अभिशप्त है। हमारे देश में ही डेंगू और मलेरिया से क्यों अधिक मौतें होती हैं इस पर किसी ने कभी ध्यान नहीं दिया। पश्चिम के देशों में भी यह बीमारी होती है लेकिन तुरंत और उचित चिकित्सा उपलब्ध होने के कारण इस बीमारी से वहां कोई मौत नहीं होती। जबकि हमारे देश में ऐसा नहीं है। गंभीर रोगों को छोड़ दिया जाये तो यहाँ अधिकांश बीमारी दूषित जल, नकली तेल, घी, मसाले और घातक रसायनों की मिलावट वाले खाद्य पदार्थों के सेवन से होती है। ऐसे में गांवों, शहरों और महानगरों को स्वस्थ बनाने का प्रधान मंत्री का सपना महज़ सपना ही लगता है।
अभी हाल ही में सरकार ने प्रत्येक गरीब को ३ लाख रुपये का चिकित्सा बीमा उपलब्ध कराने का वादा किया है। यह भी प्राइवेट अस्पतालों के लिए अवैध कमाई का एक और जरिया बननेवाला है। कागजों में फर्जी मरीज दिखाकर अथवा अधिक से अधिक अनाप-शनाप बिल बनाकर यह सारी रकम वसूल लेंगे। इसलिए इस बीमा पॉलिसी के तहत इलाज़ कराने वाले मरीजों की बीमा क्लेम से पहले ही जांच की जानी चाहिए। किसी सरकारी जांच एजेंसी से जांच कराना यदि संभव नहीं हो तो अन्य गैर सरकारी सेवाभावी संगठनों आरएसएस अथवा कांग्रेस सेवादल के कार्यकर्ताओं से करा सकते हैं। यदि इस ओर तुरंत ध्यान नहीं दिया गया तो यह भी आनेवाले समय में एक महाघोटाला साबित होगा और एक स्वच्छ और ईमानदार छवि वाले प्रधान मंत्री के दामन में दाग बनकर उभरेगा।