खनिज संपदाओं की लूट
भारत में खनन का इतिहास लगभग ६ हजार वर्ष पुराना है। आज़ादी के बाद राष्ट्र निर्माण और औद्योगिक विकास के लिए खनिजों की महत्ता सामने आयी तो सरकार ने इस ओर ध्यान दिया। १९५६ में जब औद्योगिक नीति का प्रस्ताव रखा गया तो उद्योगों के लिए खनिजों की भारी ज़रूरत महसूस की गयी। कोयला सबसे महत्वपूर्ण खनिज पदार्थ था। क्योंकि, रेलवे और बिजली उत्पादन में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।

भारत में बहुमूल्य खनिज पदार्थों हीरा, सोना, चांदी, शीशा, ताँबा, प्लेटेनियम, ज़िंक, आयरन ओर, रंगीन पत्थर, ग्रेनाइट, मार्बल, टेलकम, माईका, लाइम स्टोन, सैंड स्टोन, बाक्साइड, वेंटोनाइड आदि जैसे धात्विक, अधात्विक और लघु खानिज के कुल ९० प्रकार के खनिजों का उत्पादन होता है। देश के विकास की गति को बढ़ावा देने में इन खनिज पदार्थों की उपयोगिता महत्वपूर्ण है। इसलिए सरकार ने खनन के क्षेत्र में निजी भागीदारी का रास्ता खोल दिया। लेकिन निजी भागीदारी वाली कंपनियां देश को विकास के राह पर नहीं बल्कि विनाश के राह पर ले जा रहीं हैं।

पिछले ५० वर्षों में देश को अगर किसी ने सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है तो वह है खनन के क्षेत्र में काम करने वाली प्राइवेट कंपनियां। देश की खनिज संपदा को पहले अंग्रेजों ने जी भर कर लूटा और अब आज़ादी के बाद से ब्यूरोक्रेट्स, उद्योगपति और खनिज माफिया आपस में मिलकर दोनों हाथों से लूट रहे हैं। खनन के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए बनाये गये क़ानून के उदारीकरण ने खनन के क्षेत्र को आसानी से लूटा जानेवाला क्षेत्र बना दिया है। देश के लगभग हर बड़े राजनेता के पास, हर बड़े अधिकारी के पास और हर बड़े उद्योगपति के पास कई-कई खानें हैं। ये लोग कुछ रुपये सरकार को चुकाकर अरबों रूपये की खनिज संपदा का अवैध व्यापार करने में लगे हुए हैं।

कर्नाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने २००६ से २०१० के बीच खनन के क्षेत्र में १६०८५ करोड़ रूपये के घोटाले का आरोप लगाया था। यही नहीं उन्होंने २००९-२०१० के दौरान १८०० करोड़ रूपये के सरकारी रायल्टी के नुक्सान होने का भी अनुमान लगाया था। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने देश में खनन के क्षेत्र में हो रही लूट का जब पर्दाफ़ाश किया तो सीबीआई तथा कैग की जांच में अब तक का सबसे बड़ा कोयला घोटाला सामने आया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए कई सांसदों, मंत्रियों की खानों का लाइसेंस निरस्त कर दिया। पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान निरस्त किये गये कुल २१४ खानों में से वर्त्तमान सरकार के कार्यकाल के दौरान महज़ १४ खानों की नीलामी से ही २ लाख १४ हज़ार करोड़ रूपये के राजस्व की प्राप्ति हुई। जबकि पिछली सरकार द्वारा नीलाम की गयी कुल २१४ खानों से प्राप्त राजस्व से यह कहीं बहुत अधिक है।

कोल ब्लॉक आबंटन को लेकर जदयू के नेता शरद यादव ने संसद में यह बयान दिया था कि ताश के पत्तों की तरह कोयले की खानें लोगों को बांटी जा रही हैं। नवीन जिंदल, विजय दर्डा, संतोष बाग़दोदया (पूर्व मंत्री) जैसे लोगों के ऊपर कोयले के भ्रष्टाचार के केस दर्ज हैं। अरबों रूपये के हुए इस कोल घोटाले के खुलासे ने देश के नेताओं, अधिकारियों और खनन माफिया के गठजोड़ को उजागर किया। यह संयुक्त गिरोह सब कुछ ताक पर रखकर अपने हितों के लिए या अपने हित साधने के लिए राष्ट्रीय संपति की लूट को बेख़ौफ़ अंजाम देता आ रहा है। जंगलों का अतिक्रमण, सरकारी हिस्से के धन की चोरी, ज़मीनों पर अवैध कब्ज़ा, जैसे आपराधिक कारनामे इनका शगल बन चुका है।

खनिज संपदाओं में कोयला सबसे सस्ता खनिज माना जाता है। इस सबसे सस्ते खनिज में अगर लाखों करोड़ के घोटाले हो सकते हैं तो बहुमूल्य खनिज पदार्थों के खनन में कितने अरब रुपयों की लूट हुई होगी? इसका अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है। खनन के क्षेत्र में काम करने वाली निजी क्षेत्र की कंपनियों को मंत्री और अफसर मिलकर सरकारी खानों को कुछ रुपयों के बदले मुफ्त में बेच देते हैं। सरकारी क्षेत्र की कंपनियों में पहले घाटा दिखाओ और फिर औने-पौने दामों में निजी हाथों में सौंप दो और बदले में मिली अरबों रूपये की रिश्वत से विदेशों में आलीशान बंगले और लग्जरी कारों का काफिला। यह चरित्र बन गया है हमारे देश की राजनीति, ब्यूरोक्रेट्स और न्यायपालिका के जिम्मेदारों का।

एक छोटा सा उदाहरण है उड़ीसा के वेदांता कंपनी का। भारत सरकार के कुछ बड़े मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश की मिलीभगत से उड़ीसा स्थित भारत सरकार की बॉक्साइट और खान की कंपनी को वेदांता समूह को एक तरह से मुफ्त में दे दी गयी। नियमों के मुताबिक़ संसद में दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास होने पर ही सरकारी संपत्ति किसी निजी हाथ में हस्तांतरित की जा सकती है। जबकि इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। इस खेल में सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश और भारत सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री की मुख्य भूमिका रही। गौर करने वाली बात यह भी है कि भारत सरकार के वह वरिष्ठ मंत्री और वह न्यायाधीश दोनों की उस कंपनी में हिस्सेदारी थी। सत्य यह भी है कि उक्त मंत्री कंपनी के निदेशक बोर्ड में रहते हुए सालाना ७० हजार की डालर की भारी भरकम तनख्वाह लेते थे। इस वेदांता कंपनी के कारनामें किसी से छुपे नहीं हैं । इसके हितों की रक्षा के लिए उड़ीसा सरकार सारे नियमों-कानूनों को ताक पर रख चुकी है।

उड़ीसा स्थित सरकारी कंपनी को अधिग्रहीत करने के बाद हिंदुस्तान जिंक नामक भारत सरकार की खरबों रूपये की कीमत वाली कंपनी को उसी भ्रष्ट जज और मंत्री तथा अन्य की सहायता से मात्र ४२५ करोड़ रूपये की मामूली सी कीमत में वेदांता कंपनी ने खरीद लिया। यह सौदा भी अवैध तरीके से ही हुआ। हिंदुस्तान जिंक नामक वह भारत सरकार की कंपनी, जो अब तक घाटे में चल रही थी, जिसके कारण वह बेच दी गयी, अधिग्रहीत होने के महज़ साल भर बाद ही ९००० करोड़ रूपये के लाभ में आ गयी। इसका मतलब यह हुआ कि यह ९००० करोड़ रूपये कंपनी के अधिकारी, मंत्री और अन्य मिलकर लूट रहे थे। अगर नहीं तो कर्मचारी या अधिकारी काम नहीं करते थे, मुफ्त की तनख्वाह लेते थे। घाटे में चलने वाली सरकारी कंपनी निजी हाथों में जाकर अचानक हज़ारों करोड़ के लाभ में आ जाती है तो यह स्थिति बहुत कुछ सोचने के लिए विवश करती है। हिंदुस्तान जिंक नामक इस कंपनी में चांदी का सबसे अधिक उत्पादन होता है। यह भारत की सबसे ज़्यादा चांदी उत्पादन करने वाली कंपनी है। इस कंपनी का ९००० करोड़ रूपये का लाभांश तो व्हाइट मनी के रूप में है। इसमें ब्लैक मनी जोड़ दिया जाये जो कि असंभव नहीं है, तो लाभ का यह आंकड़ा लाखों करोड़ में पहुँच जायेगा।

यदि हिंदुस्तान जिंक कंपनी के अधिकारी, कर्मचारी ईमानदारी से काम कर रहे होते तो देश को प्रतिवर्ष ९००० करोड़ रूपये अतिरिक्त आय होती। इससे देश के विकास की गति को बढ़ावा मिलता। प्रतिवर्ष होने वाली इस आय से महज़ पांच वर्षों में ही देश में ८०० मेडिकल कालेज और ८०० विश्वविद्यालय बनाये जा सकते थे।

कुल मिलाकर हम देख सकते हैं कि एक उद्योगपति अपने हितों के लिए देश के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को कितनी आसानी से साध लेता है और यह सन्देश भी देता है कि पूंजी की राह में सिर्फ एक ही विकल्प है या तो बिक जाओ या फिर मर जाओ। इस वेदांता के हाथ छत्तीसगढ़ के कोरबा स्थित बाल्को कंपनी के चिमनी काण्ड में मरने वाले १४ मज़दूरों की ह्त्या से भी रँगे हुए हैं। देश में ऐसे घोटाले और सरकारी संपतियों को लूटने का खेल बड़े पैमाने पर हो रहा है। कोई पूछने वाला नहीं है। कोई जांच नहीं है। क्योंकि ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार, लूट और काली कमाई करने में सभी लगे हुए हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान योगगुरु रामदेव ने चुनावी सभाओं में खनिज संपदाओं की लूट का आंकड़ा बताते हुए कहा था कि खनिजों के उत्पादन के क्षेत्र में ५० लाख करोड़ रूपये से भी अधिक का भ्रष्टाचार प्रतिवर्ष हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट के वकील वरिष्ठ श्री प्रशांत भूषण ने खनन के क्षेत्र में हो रही एक और लूट का मामला सुप्रीम कोर्ट में उठाया है। आयरन ओर की लूट का यह मामला अभी लंबित चल रहा है। सीबीआई को जाँच का आदेश मिलने का इंतजार है। इसमें भी कई बड़े नेता, खनन माफिया और ब्यूरोक्रेट्स के कई बड़े अधिकारी शामिल हैं। एक तथ्य यह भी है कि इससे पहले जिन लोगों ने आयरन ओर की हो रही लूट के मामले को उठाया उनकी हत्या हो चुकी है।

भारत सरकार को चाहिए कि वह देश की राष्ट्रीय संपदाओं, चाहे वो खनिज संपदा हो, प्राकृतिक संसाधन हो, इन सब पर अपना नियंत्रण रखे। इन्हें किसी निजी हाथों में न सौंपे। निजी खादानों में काम करने वाले मज़दूरों का भयंकर शोषण किया जाता है। अप्रत्याशित रूप से होने वाली किसी दुर्घटना के बाद यह निजी कंपनियां अपना पल्ला झटक लेती हैं और नियमों का हवाला देकर अक्सर अपनी जवाबदेही से बच निकलती हैं। गरीब न्याय की आस लिए इस दुनिया से विदा हो जाता है। सरकारी क्षेत्र की कंपनियों में अगर ईमानदारी से काम हो तो कोई कारण नहीं कि कंपनियां घाटे में चलें। माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी से मैं ये गुज़ारिश करना चाहूँगा कि खनन के क्षेत्र में हो रहे इस भयानक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए शीघ्र ही कोई कारगर कदम उठायें। खनिज संपदा को लूटने वाले सभी आरोपियों की सारी संपत्ति जब्त कर उन्हें कठोर सज़ा दी जाये। इन भ्रष्टाचारी राक्षसों ने खादान से बहुमूल्य संपदा लूटकर केवल ज़मीन को ही खोखला नहीं किया है बल्कि इस देश को ही खोखला कर दिया है।