भारत का पर्यटन विभाग
किसी भी देश के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित करने का सबसे प्रमुख स्रोत उस देश का पर्यटन उद्योग है। इस लिहाज से पर्यटन विभाग को देश का सबसे कमाऊ पूत कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हमारे देश भारत में पर्यटन के जितने विशाल क्षेत्र हैं, संभवतः दुनिया के किसी एक देश में उतने नहीं हैं।
अपने विशिष्ट जैव विविधताओं, समृद्ध सांस्कृतिक विरासतों, पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्त्व के स्थलों, स्मारकों और नयनाभिरम्य प्रकितिक - भौगोलिक दृश्यों के इंद्रधनुषी रंगों से सराबोर भारत विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा पर्यटन की दृष्टि से कहीं बहुत अधिक समृद्ध है। कश्मीर को भारत का स्वर्ग कहा जाता है तो उत्तराखण्ड को भारत का स्विट्ज़रलैंड। इसी प्रकार लाखों वर्ष की गुफाओं और हज़ार खम्भों के मंदिर वाला आंध्र प्रदेश। चालुक्य, राष्ट्रकूट जैसे प्राचीन राजवंशों के इतिहास को समेटे प्राचीन नगर हंपी के अवशेषों और प्राकृतिक झरनों प्रसिद्द कर्नाटक। भारत का नियाग्रा कहे जाने वाला चित्रकोट और प्रागैतिहासिक धरोहरों को अपने में समेटे छत्तीसगढ़। कहने का आशय यह कि भारत में हजारों लाखों वर्ष प्राचीन संस्कृतियों-सभ्यताओं का इतिहास बिखरा पड़ा है जो विदेशियों के लिए सदैव जिज्ञासा का केंद्र भी रहा है और आकर्षण का सबब भी।
इन समृद्ध सांस्कृतिक विरासतों, ऐतिहासिक महत्त्व के स्थलों, स्मारकों को आज़ादी के बाद से अबतक वैश्विक पटल पर पहचान दिलाने की कभी ईमानदार कोशिश हुई ही नहीं। सच कहूँ तो अब तक हुए पर्यटन मंत्रियों में से अधिकांश को अपने देश के पर्यटन स्थलों के दशवें हिस्से की भी मुकम्मल जानकारी नहीं है। ऐशोआराम वाले सैरगाहों जैसे गोवा, पांडिचेरी, मुंबई आदि प्रचलित जगहों के बारे में ही पता होगा। जबकि देखा जाये तो भारत में ईसा की प्रारंभिक शताब्दियों से लेकर मुगलोत्तर काल तक के ऐसे ऐसे स्थल, किलों, स्मारकों, मंदिरों, इमारतों के भग्नावशेषों की एक लंबी और समृद्ध श्रृंखला है जो अपने शिल्प कला, स्थापत्य कला, वास्तु कला और अनूठे सौंदर्य के चलते विश्व मानचित्र पर अपना नाम दर्ज करा सकती है। उदहारण स्वरुप ताज़ को ही ले लीजिये। एक मुग़ल शासक की पत्नी में बने इस स्मारक या कब्र का इतना अधिक प्रचार किया गया की विश्व भर से पर्यटक मात्र इसे ही देखने भारत आते हैं। जबी ठीक इसके विपरीत उन्हीं मुगलों द्वारा ध्वस्त किये गए मंदिरों महलों किलों और खूबसूरत स्मारकों के ध्वंसावशेष सरकार को नहीं दीखते।
राजस्थान के चित्तौड़ के तीनों साका के लपटों की आँच आज भी पर्यटक वहां जाकर महसूस करते हैं। शौर्य, स्वाभिमान, साहस और जौहर की धरती चित्तौड़, जहाँ सर्वप्रथम स्वतंत्रता की अलख जगी थी, अपनी उपेक्षा के चलते विश्व के पर्यटन मानचित्र पर अपना नाम तक दर्ज नहीं करा पाया। देश के ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों की उपेक्षा देखकर ऐसा लगता है कि भारत की सरकारें एक सोची समझी रणनीति के तहत देश की सांस्कृतिक - ऐतिहासिक धरोहरों को मिटाने में लगीं हैं। आज से 20 - 25 वर्ष पहले ही आगरा के ताज़ के आस-पास के सारे लघु उद्योगों को ताज़ की सुरक्षा के नाम पर बंद करा दिया गया। जबकि चित्तौड़, झाँसी, महोबा आदि ऐतिहासिक किलों के आस-पास ऐसे उद्योगों को स्थापित करने का लाइसेंस प्रदान कर दिया गया है जिनसे इन ऐतिहासिक धरोहरों का अस्तित्व मिटने की कगार पर है। इन स्थलों पर जानेवाला पर्यटक वापसी में धुल, राख और बदबू की सौगात लेकर ही लौटता है।
चित्तौड़ की तो स्थिति तो यह है कि उदयपुर से बहार निकलते ही हिंदुस्तान जिंक नामक कंपनी से उठती रासायनिक बदबू सांस भी नहीं लेने देती। चितौड़ किले के चरों ओर हो रहे वैध-अवैध खनन के चलते उड़ती धूल और पत्थरों के बुरादे से पर्यटकों का बुरा हाल हो जाता है। चारों ओर गन्दगी और बदबू बिखरी पड़ी है। कोई विदेशी पर्यटक यदि (भारतीय पर्यटन स्थल के लुभावने दृश्यों को विज्ञापनों में देखकर) देखने जाता भी तो उसे भारतीय पर्यटन विभाग के कारनामों और व्यवस्था पर रोना ही आता है। मुग़ल कालीन स्मारकों, किलों, मकबरों की अपेक्षा भारत के प्राचीन काल के स्मारकों, स्थलों की उपेक्षा क्यों की जाती है यह समझ से परे है।
राजस्थान में ही रणकपुर और देलवाड़ा के कलात्मक मंदिरों के बारे में इस देश के ही अधिकांश लोगों को पता नहीं है। कुंभलगढ़ को भारत सरकार ने अभी हाल ही में पर्यटन के मानचित्र पर रखा है। मध्य प्रदेश में खजुराहो के अलावा और भी बहुत कुछ है देखने के लिए। लेकिन अब तक किसी भी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। ऐसे में प्रधान मंत्री नरेन्द्रमोदी के इस कथन से कि पर्यटन आएगा और आतंकवाद जायेगा, एक उम्मीद सी जरूर जगती है कि भारत की मूल आत्मा, उसके भावों, विचारों, संस्कृति, रहन-सहन और उसके गौरवमयी अतीत को दर्शानेवाले स्थल वैश्विक पर्यटन मानचित्र पर चटक रंगों में देखे जा सकेंगे।
आइये! अब नज़र डालते हैं पर्यटन को बढ़ावा देने वाले आवश्यक संसाधनों पर। विदेशी पर्यटकों को भारत भ्रमण के लिए आकर्षित करने का सबसे प्रमुख माध्यम है हवाई यात्रा। आज आलम यह है कि समूचे विश्व से भारत आनेवाले पर्यटक भारतीय वायुसेवा 'एयर इण्डिया' से सफर करने से हैं। इस देश के भ्रष्ट नेताओं और अफसर शाही ने मिलकर एयर इंडिया को लूटकर खोखला कर दिया है। विदेशी यात्रियों को वह सुविधाएँ इस एयर लाइन में नहीं मिल पातीं जो विदेशी एयर लाइन में मिलती हैं।
महज दस साल पहले अस्तित्व में आयी इंडिगो एयर लाइन्स में 145 एयर क्राफ्ट अपनी सेवाएं दे रहे हैं। देश की पांचों एयर लाइन्स के विमानों को मिला दिया जाये तो कुल विमानों की संख्या 400 से ज्यादा नहीं होगी, जबकि छोटे से देश दुबई की एक ही एयर लाइन एमिरेट्स के विमानों की संख्या भारत के कुल विमानों की संख्या से कहीं ज्यादा है। हालाँकि दुबई की और भी कई छोटी एयर लाइन्स हैं।
वर्तमान समय में दुबई, बैंकॉक, सिंगापूर, मालदीव, मलेशिया, मॉरीशस, हांगकांग और श्रीलंका की पूरी अर्थव्यवस्था पर्यटन पर आधारित है। विश्व पर्यटन विभाग द्वारा जारी किये गए एक आंकड़े के अनुसार दुबई में औसतन प्रतिदिन एक से सवा लाख यात्री हवाई सफर करते हैं जबकि थाईलैंड और सिंगापूर में प्रतिदिन हवाई जहाज से आने और जाने वाले पर्यटकों की संख्या 50 हज़ार है।
पूरी दुनिया में सबसे प्राचीन संस्कृति का देश भारत को ही माना जाता है। यहाँ सभ्यता की किरणें सर्वप्रथम आलोकित हुईं फिर भी पर्यटन के मामले में दुनिया भर के मुकाबले हमारा देश अभी बहुत पीछे है। पिछले 30 वर्षों से पर्यटन को बढ़ावा देने वाली न कोई ठोस योजना बनायी गयी और न ही इस पर ध्यान दिया गया। दुनिया के लगभग हर देश में भारत के उच्चायुक्त हैं, ऑफिस है संसाधन हैं इसके बावजूद वहां भारत के पर्यटन स्थलों की मार्केटिंग नहीं की गयी जिससे उस देश के नागरिक भारत की सांस्कृतिक, प्राकृतिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक स्थलों को देखने, जानने और समझने के लिए आ सकें। एक निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप यदि उन देशों में ताजमहल की तर्ज़ पर भारत के अन्य स्मारकों, स्थलों को प्रचारित करने का जिम्मा उच्चायुक्त कार्यालयों को दिया जाये और प्रति वर्ष उस देश से 1 लाख पर्यटकों को भारत आने को प्रेरित किया जाए तो 3 करोड़ पर्यटक प्रतिवर्ष भारत भ्रमण पर आ सकते हैं। प्रति पर्यटक यदि 2500 अमरीकी डॉलर भी खर्च करे तो महज पांच वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हो जाएगी। देश के अन्य संसाधनों की अपेक्षा पर्यटन से होने वाली आय कई गुना अधिक हो जायेगी। इसके लिए सरकार को विश्वस्तरीय सुविधाओं से युक्त हवाई यात्रा, पर्यटन स्थलों तक ले जाने और ले आने के लिए टैक्सी या बस तथा स्थलों की जानकारी प्रदान करने वाला सभ्य, सुसंस्कृत गाइड की सुविधा को सुनिश्चित करना होगा।
वर्ष के पांच महीने बर्फ से ढके रहनेवाले दुनिया के देशों से लोग सर्दियों में भारत आना चाहते हैं क्योंकि जाड़ों में यहाँ का मौसम उनके बेहद अनुकूल रहता है। लेकिन उचित जानकारी और सुविधाओं के अकाल के चलते वे नहीं आते। इस देश के पर्यटन विभाग के बड़े अफसर और अन्य नौकरशाह सिर्फ कागजों पर कार्रवाई करके सरकारी खजाने को लूटने में व्यस्त हैं। जबकि ठोस धरातल पर सकारात्मक कार्य किये जाएँ तो पर्यटन उद्योग देश की पूरी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ कर देने का माद्दा रखता है। पिछले 15 बरसों से दुबई ने आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर के बल पर दुनिया भर के पर्यटकों का न केवल ध्यान आकर्षित किया है वरन उन्हें वहां आने को विवश भी किया है। दुबई में 1100 फाइव स्टार होटल और अपार्टमेंट्स हैं जबकि थ्री स्टार और टू स्टार की गिनती ही नहीं है। जबकि पूरे भारत में फाइव स्टार होटलों की संख्या 390 से ज्यादा नहीं है। इनमें से भी सरकार के अधीन होटलों की संख्या न के बराबर ही है। इस बात को संभवतः बहुत कम लोग जानते होंगे कि सरकारी क्षेत्र के 10 से 15 होटलों को औने-पौने दामों में अपने निजी स्वार्थ के लिए देश के ही एक जिम्मेदार लेकिन भ्रष्ट व्यक्ति ने अपने चहेतों को बेच दिया। यह ऐसा मामला है जो सीबीआई की जाँच लिस्ट में भी हो सकता है, अगर नहीं तो इसकी जाँच अवश्य होनी चाहिए। दिल्ली का क़ुतुब होटल, अशोका यात्री, उदयपुर का लक्ष्मी विलास, मुम्बई का सेंटर जू सहित कई अन्य फाइव स्टार होटलों का निजीकरण कर दिया गया। पर्यटन को बढ़ावा देने में होटल व्यवसाय का मुख्य योगदान होता है। ऐसे में भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के पर्यटन आएगा और आतंकवाद जायेगा वाले बयान को अमली जामा पहनाने के लिए कौन सी नीतियां लागू की जाती हैं यह देखने की बात होगी।
अपने विशिष्ट जैव विविधताओं, समृद्ध सांस्कृतिक विरासतों, पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्त्व के स्थलों, स्मारकों और नयनाभिरम्य प्रकितिक - भौगोलिक दृश्यों के इंद्रधनुषी रंगों से सराबोर भारत विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा पर्यटन की दृष्टि से कहीं बहुत अधिक समृद्ध है। कश्मीर को भारत का स्वर्ग कहा जाता है तो उत्तराखण्ड को भारत का स्विट्ज़रलैंड। इसी प्रकार लाखों वर्ष की गुफाओं और हज़ार खम्भों के मंदिर वाला आंध्र प्रदेश। चालुक्य, राष्ट्रकूट जैसे प्राचीन राजवंशों के इतिहास को समेटे प्राचीन नगर हंपी के अवशेषों और प्राकृतिक झरनों प्रसिद्द कर्नाटक। भारत का नियाग्रा कहे जाने वाला चित्रकोट और प्रागैतिहासिक धरोहरों को अपने में समेटे छत्तीसगढ़। कहने का आशय यह कि भारत में हजारों लाखों वर्ष प्राचीन संस्कृतियों-सभ्यताओं का इतिहास बिखरा पड़ा है जो विदेशियों के लिए सदैव जिज्ञासा का केंद्र भी रहा है और आकर्षण का सबब भी।
इन समृद्ध सांस्कृतिक विरासतों, ऐतिहासिक महत्त्व के स्थलों, स्मारकों को आज़ादी के बाद से अबतक वैश्विक पटल पर पहचान दिलाने की कभी ईमानदार कोशिश हुई ही नहीं। सच कहूँ तो अब तक हुए पर्यटन मंत्रियों में से अधिकांश को अपने देश के पर्यटन स्थलों के दशवें हिस्से की भी मुकम्मल जानकारी नहीं है। ऐशोआराम वाले सैरगाहों जैसे गोवा, पांडिचेरी, मुंबई आदि प्रचलित जगहों के बारे में ही पता होगा। जबकि देखा जाये तो भारत में ईसा की प्रारंभिक शताब्दियों से लेकर मुगलोत्तर काल तक के ऐसे ऐसे स्थल, किलों, स्मारकों, मंदिरों, इमारतों के भग्नावशेषों की एक लंबी और समृद्ध श्रृंखला है जो अपने शिल्प कला, स्थापत्य कला, वास्तु कला और अनूठे सौंदर्य के चलते विश्व मानचित्र पर अपना नाम दर्ज करा सकती है। उदहारण स्वरुप ताज़ को ही ले लीजिये। एक मुग़ल शासक की पत्नी में बने इस स्मारक या कब्र का इतना अधिक प्रचार किया गया की विश्व भर से पर्यटक मात्र इसे ही देखने भारत आते हैं। जबी ठीक इसके विपरीत उन्हीं मुगलों द्वारा ध्वस्त किये गए मंदिरों महलों किलों और खूबसूरत स्मारकों के ध्वंसावशेष सरकार को नहीं दीखते।
राजस्थान के चित्तौड़ के तीनों साका के लपटों की आँच आज भी पर्यटक वहां जाकर महसूस करते हैं। शौर्य, स्वाभिमान, साहस और जौहर की धरती चित्तौड़, जहाँ सर्वप्रथम स्वतंत्रता की अलख जगी थी, अपनी उपेक्षा के चलते विश्व के पर्यटन मानचित्र पर अपना नाम तक दर्ज नहीं करा पाया। देश के ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों की उपेक्षा देखकर ऐसा लगता है कि भारत की सरकारें एक सोची समझी रणनीति के तहत देश की सांस्कृतिक - ऐतिहासिक धरोहरों को मिटाने में लगीं हैं। आज से 20 - 25 वर्ष पहले ही आगरा के ताज़ के आस-पास के सारे लघु उद्योगों को ताज़ की सुरक्षा के नाम पर बंद करा दिया गया। जबकि चित्तौड़, झाँसी, महोबा आदि ऐतिहासिक किलों के आस-पास ऐसे उद्योगों को स्थापित करने का लाइसेंस प्रदान कर दिया गया है जिनसे इन ऐतिहासिक धरोहरों का अस्तित्व मिटने की कगार पर है। इन स्थलों पर जानेवाला पर्यटक वापसी में धुल, राख और बदबू की सौगात लेकर ही लौटता है।
चित्तौड़ की तो स्थिति तो यह है कि उदयपुर से बहार निकलते ही हिंदुस्तान जिंक नामक कंपनी से उठती रासायनिक बदबू सांस भी नहीं लेने देती। चितौड़ किले के चरों ओर हो रहे वैध-अवैध खनन के चलते उड़ती धूल और पत्थरों के बुरादे से पर्यटकों का बुरा हाल हो जाता है। चारों ओर गन्दगी और बदबू बिखरी पड़ी है। कोई विदेशी पर्यटक यदि (भारतीय पर्यटन स्थल के लुभावने दृश्यों को विज्ञापनों में देखकर) देखने जाता भी तो उसे भारतीय पर्यटन विभाग के कारनामों और व्यवस्था पर रोना ही आता है। मुग़ल कालीन स्मारकों, किलों, मकबरों की अपेक्षा भारत के प्राचीन काल के स्मारकों, स्थलों की उपेक्षा क्यों की जाती है यह समझ से परे है।
राजस्थान में ही रणकपुर और देलवाड़ा के कलात्मक मंदिरों के बारे में इस देश के ही अधिकांश लोगों को पता नहीं है। कुंभलगढ़ को भारत सरकार ने अभी हाल ही में पर्यटन के मानचित्र पर रखा है। मध्य प्रदेश में खजुराहो के अलावा और भी बहुत कुछ है देखने के लिए। लेकिन अब तक किसी भी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। ऐसे में प्रधान मंत्री नरेन्द्रमोदी के इस कथन से कि पर्यटन आएगा और आतंकवाद जायेगा, एक उम्मीद सी जरूर जगती है कि भारत की मूल आत्मा, उसके भावों, विचारों, संस्कृति, रहन-सहन और उसके गौरवमयी अतीत को दर्शानेवाले स्थल वैश्विक पर्यटन मानचित्र पर चटक रंगों में देखे जा सकेंगे।
आइये! अब नज़र डालते हैं पर्यटन को बढ़ावा देने वाले आवश्यक संसाधनों पर। विदेशी पर्यटकों को भारत भ्रमण के लिए आकर्षित करने का सबसे प्रमुख माध्यम है हवाई यात्रा। आज आलम यह है कि समूचे विश्व से भारत आनेवाले पर्यटक भारतीय वायुसेवा 'एयर इण्डिया' से सफर करने से हैं। इस देश के भ्रष्ट नेताओं और अफसर शाही ने मिलकर एयर इंडिया को लूटकर खोखला कर दिया है। विदेशी यात्रियों को वह सुविधाएँ इस एयर लाइन में नहीं मिल पातीं जो विदेशी एयर लाइन में मिलती हैं।
महज दस साल पहले अस्तित्व में आयी इंडिगो एयर लाइन्स में 145 एयर क्राफ्ट अपनी सेवाएं दे रहे हैं। देश की पांचों एयर लाइन्स के विमानों को मिला दिया जाये तो कुल विमानों की संख्या 400 से ज्यादा नहीं होगी, जबकि छोटे से देश दुबई की एक ही एयर लाइन एमिरेट्स के विमानों की संख्या भारत के कुल विमानों की संख्या से कहीं ज्यादा है। हालाँकि दुबई की और भी कई छोटी एयर लाइन्स हैं।
वर्तमान समय में दुबई, बैंकॉक, सिंगापूर, मालदीव, मलेशिया, मॉरीशस, हांगकांग और श्रीलंका की पूरी अर्थव्यवस्था पर्यटन पर आधारित है। विश्व पर्यटन विभाग द्वारा जारी किये गए एक आंकड़े के अनुसार दुबई में औसतन प्रतिदिन एक से सवा लाख यात्री हवाई सफर करते हैं जबकि थाईलैंड और सिंगापूर में प्रतिदिन हवाई जहाज से आने और जाने वाले पर्यटकों की संख्या 50 हज़ार है।
पूरी दुनिया में सबसे प्राचीन संस्कृति का देश भारत को ही माना जाता है। यहाँ सभ्यता की किरणें सर्वप्रथम आलोकित हुईं फिर भी पर्यटन के मामले में दुनिया भर के मुकाबले हमारा देश अभी बहुत पीछे है। पिछले 30 वर्षों से पर्यटन को बढ़ावा देने वाली न कोई ठोस योजना बनायी गयी और न ही इस पर ध्यान दिया गया। दुनिया के लगभग हर देश में भारत के उच्चायुक्त हैं, ऑफिस है संसाधन हैं इसके बावजूद वहां भारत के पर्यटन स्थलों की मार्केटिंग नहीं की गयी जिससे उस देश के नागरिक भारत की सांस्कृतिक, प्राकृतिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक स्थलों को देखने, जानने और समझने के लिए आ सकें। एक निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप यदि उन देशों में ताजमहल की तर्ज़ पर भारत के अन्य स्मारकों, स्थलों को प्रचारित करने का जिम्मा उच्चायुक्त कार्यालयों को दिया जाये और प्रति वर्ष उस देश से 1 लाख पर्यटकों को भारत आने को प्रेरित किया जाए तो 3 करोड़ पर्यटक प्रतिवर्ष भारत भ्रमण पर आ सकते हैं। प्रति पर्यटक यदि 2500 अमरीकी डॉलर भी खर्च करे तो महज पांच वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हो जाएगी। देश के अन्य संसाधनों की अपेक्षा पर्यटन से होने वाली आय कई गुना अधिक हो जायेगी। इसके लिए सरकार को विश्वस्तरीय सुविधाओं से युक्त हवाई यात्रा, पर्यटन स्थलों तक ले जाने और ले आने के लिए टैक्सी या बस तथा स्थलों की जानकारी प्रदान करने वाला सभ्य, सुसंस्कृत गाइड की सुविधा को सुनिश्चित करना होगा।
वर्ष के पांच महीने बर्फ से ढके रहनेवाले दुनिया के देशों से लोग सर्दियों में भारत आना चाहते हैं क्योंकि जाड़ों में यहाँ का मौसम उनके बेहद अनुकूल रहता है। लेकिन उचित जानकारी और सुविधाओं के अकाल के चलते वे नहीं आते। इस देश के पर्यटन विभाग के बड़े अफसर और अन्य नौकरशाह सिर्फ कागजों पर कार्रवाई करके सरकारी खजाने को लूटने में व्यस्त हैं। जबकि ठोस धरातल पर सकारात्मक कार्य किये जाएँ तो पर्यटन उद्योग देश की पूरी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ कर देने का माद्दा रखता है। पिछले 15 बरसों से दुबई ने आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर के बल पर दुनिया भर के पर्यटकों का न केवल ध्यान आकर्षित किया है वरन उन्हें वहां आने को विवश भी किया है। दुबई में 1100 फाइव स्टार होटल और अपार्टमेंट्स हैं जबकि थ्री स्टार और टू स्टार की गिनती ही नहीं है। जबकि पूरे भारत में फाइव स्टार होटलों की संख्या 390 से ज्यादा नहीं है। इनमें से भी सरकार के अधीन होटलों की संख्या न के बराबर ही है। इस बात को संभवतः बहुत कम लोग जानते होंगे कि सरकारी क्षेत्र के 10 से 15 होटलों को औने-पौने दामों में अपने निजी स्वार्थ के लिए देश के ही एक जिम्मेदार लेकिन भ्रष्ट व्यक्ति ने अपने चहेतों को बेच दिया। यह ऐसा मामला है जो सीबीआई की जाँच लिस्ट में भी हो सकता है, अगर नहीं तो इसकी जाँच अवश्य होनी चाहिए। दिल्ली का क़ुतुब होटल, अशोका यात्री, उदयपुर का लक्ष्मी विलास, मुम्बई का सेंटर जू सहित कई अन्य फाइव स्टार होटलों का निजीकरण कर दिया गया। पर्यटन को बढ़ावा देने में होटल व्यवसाय का मुख्य योगदान होता है। ऐसे में भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के पर्यटन आएगा और आतंकवाद जायेगा वाले बयान को अमली जामा पहनाने के लिए कौन सी नीतियां लागू की जाती हैं यह देखने की बात होगी।