शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार : एक गंभीर चुनौती
भारत में भ्रष्टाचार मूर्त्त और अमूर्त्त दोनों ही रूपों में नज़र आता है। यहाँ भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं कि शायद ही कोई क्षेत्र इससे बचा हो। सबसे पवित्र माना जानेवाला शिक्षा का क्षेत्र भी भ्रष्टाचार का प्रमुख केंद्र बन गया है।

पिछले १५ वर्षों से भारत में शिक्षा के क्षेत्र में जबरदस्त घोटाले और भ्रष्टाचार हुए हैं। हज़ारों करोड़ के ये घोटाले शिक्षा विभाग की कारगुजारियों के साथ-साथ नीति नियंताओं की मानसिकता को भी उजागर करते हैं। गांव से लेकर महानगरों तक और नर्सरी से लेकर विश्वविद्यालयों तक लूट मची है। इस बात को सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकार किया है कि शिक्षा विभाग में जबरदस्त भ्रष्टाचार है।

देश का हर आम आदमी भी इस बात को जानता है कि प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में गुणवत्तापरक शिक्षा के नाम पर उसे लूटा जा रहा है फिर भी वह लुटे जाने के लिए विवश है क्योंकि उसकी संतति के सुनहरे भविष्य का सवाल जो होता है। शिक्षा के नाम पर जारी इस लूट में केवल शिक्षण संस्थान ही नहीं बल्कि शिक्षा विभाग का हर छोटा बड़ा कर्मचारी / अधिकारी शामिल है।

आज लगभग हर बड़े नेता की यूनिवर्सिटी है। उसी तरह जैसे पहले हर बड़े नेता की चीनी मिलें हुआ करती थीं। सिर्फ नेता ही नहीं बड़े आईएएस अधिकारी और माफिया सरगनाओं ने उच्च शिक्षण संस्थान को कम रिस्क और अधिक मुनाफे वाला लाभकारी धंधा बना लिया है। यूनिवर्सिटी खोलने के लिए इन्होंने बड़े-बड़े फर्जीवाड़े भी किये हैं। सरकारी जमीनें कब्ज़ा की गयी हैं। यदि इसकी सीबीआई जाँच करायी जाए तो सारा फर्जीवाड़ा सामने आ जायेगा।

सरकारी शिक्षण संस्थानों में मुफ्त शिक्षा के नाम पर क्या पढ़ाया जाता है? सरकारी स्कूलों में बच्चे हैं भी या नहीं, बच्चे हैं तो अध्यापक हैं या नहीं, हैं तो वह क्या और कैसे पढ़ा रहे हैं इसे देखने और इसकी जाँच करने के लिए शिक्षा विभाग के अधिकारियों के पास समय नहीं है।

मैं माननीय प्रधान मंत्रीजी का ध्यान उनके एक वक्तव्य की ओर दिलाना चाहूंगा जो कि उन्होंने अपने एक चुनावी भाषण के दौरान कही थी। उन्होंने कहा था कि अकेले गुजरात में ४५ विश्वविद्यालय हैं। मेरा प्रधान मंत्रीजी से अनुरोध है कि हर राज्य में वहां की जनसँख्या के हिसाब से विश्वविद्यालय खोले जाने चाहिए। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो, इसके लिए कठोर और कारगर नियम बनाये जाने चाहिए। इतना ही नहीं शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार को अंजाम देनेवाले को कठोर सजा देने के प्रावधान की भी आवश्यकता है।

देश में कुल 542 संसदीय क्षेत्र हैं हर संसदीय क्षेत्र में कम से कम 2 विश्वविद्यालय खोले जाने की आवश्यकता है ताकि प्राइवेट यूनिवर्सिटियों द्वारा लूट, रिश्वतखोरी और उनके द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार पर लगाम लगायी जा सके। साथ ही प्राइवेट यूनिवर्सिटियां जिन जमीनों पर बनायीं गयी हैं उन जमीनों की भी जांच करायी जाय।

भारत में वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार को देखकर प्रतीत होता है कि इस देश के शिक्षा नीति के नियंताओं को इसमें सुधार की कोई गरज ही नहीं है।

आज़ादी के 70 साल बाद भी दूर-दराज के गांवो के मासूमों को शिक्षा सुलभ नहीं हो पायी है। विशेष तौर पर लड़कियों के लिए। महिलाओं के साथ होने वाले यौन अपराधों की पृष्ठभूमि में अशिक्षा को एक प्रमुख कारण कहा जा सकता है।

हालाँकि पिछले 20 वर्षों से प्राइवेट शिक्षण संस्थानों की इस देश में एक बाढ़ सी आयी है। गांव से लेकर बड़े महानगरों तक फैली इन प्राइवेट शिक्षण संस्थानों ने शिक्षा का औद्योगीकरण कर दिया है। शिक्षा के इस औद्योगीकरण ने देश के राजनेताओं, आला अफसरों यहाँ तक कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की इस क्षेत्र में भागीदारी को बढ़ावा दिया है। मंचों से गुणवत्तापरक शिक्षा की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले इन राजनेताओं, अफसरों, जजों और अन्य, जो प्राइवेट शिक्षण संस्थानों का संचालन कर रहे हैं, के लड़के विदेशों में शिक्षा ग्रहण करते हैं। इन्हें इस बात का बखूबी ज्ञान है कि उनके द्वारा संचालित शिक्षण संस्थान सिर्फ और सिर्फ कमाई का एक औद्योगिक प्रतिष्ठान है न कि गुणवत्तापरक शिक्षा केंद्र। शिक्षा के क्षेत्र में यह भेदभाव गरीबों को और गरीब बनाने के लिए काफी है।

राजनीतिक और प्रशासनिक रसूखवालों की इस धंधे में होनेवाली मोटी कमाई के कारण सरकार के निर्णयों में हस्तक्षेप भी बढ़ा है। आला अफसरों ने अपने परिवार के अन्य सदस्यों के नाम से प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं को खोल रखा है। इन तथाकथित प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थाओं की शाखाएं कई शहरों में होती हैं, जहाँ ये उच्च और गुणवत्तापरक शिक्षा के नाम पर छात्रों से मोटी कमाई करते हैं।

देश के हर कोने में इन शिक्षा माफियाओं ने ट्रस्ट बनाकर न केवल सरकारी जमीनें हड़प ली हैं वरन अपने हित के लिए नियमों में फेरबदल भी करवा लेते हैं। सत्तारूढ़ दल, चाहे वो जो भी हो, वोटों और सत्ता के लालच में इनके विरुद्ध कार्रवाई करना तो दूर इनके हितों की रक्षा करने में तत्पर हैं। सबसे अधिक शिक्षा के क्षेत्र में दुर्व्यवस्था उत्तर प्रदेश और बिहार में है। सपा मुखिया मुलायम सिंह ने अपने मुख्य मंत्रित्व काल में परीक्षाओं में होने वाली नक़ल पर लगी रोक हटाकर एक प्रकार से युवाओं को अशिक्षा के अन्धकार में धकेल दिया है। यही कारण है कि सबसे अधिक जनसँख्या वाले उत्तर प्रदेश में अल्पशिक्षित बेरोजगार युवाओं की एक बड़ी फ़ौज है। इन अल्पशिक्षित युवाओं को क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों ने अपने स्वार्थ पूर्ति का माध्यम बना लिया है। देश के युवा यदि अशिक्षित और बेरोजगार होंगे तो देश का विकास भला कैसे संभव है।

मैं माननीय प्रधान मंत्री से कहना चाहता हूँ कि राष्ट्र निर्माण में सहायक देश के नौनिहालों का भविष्य सुधारने के लिए इस दिशा में कारगर कदम उठायें। प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं में जहाँ डोनेशन के नाम पर भयंकर लूट मची है, उनकी सीबीआई जांच कराएं। इन शिक्षण संस्थाओं के संचालकों की सारी कलई खुल जायेगी।

मैं माननीय प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी से निवेदन करूँगा कि इस देश की जनता को आपसे बहुत सारी अपेक्षाएं हैं। हर आम आदमी इस सड़े-गले भ्रष्ट तंत्र से आजिज आ चुका है। रिश्वतखोरी इस देश की प्रशासनिक व्यवस्था का जैसे जन्मसिद्ध अधिकार बन गया है। वह इससे मुक्ति चाहता है। इस देश से भ्रष्टाचार यदि मिटाना है तो सबसे पहले शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाना होगा और देश के युवाओं को इन शिक्षा माफियाओं के चंगुल से निजात दिलानी होगी।

मेरे मतानुसार शिक्षा व्यवस्था का कार्य केंद्र या राज्य सरकार का न होकर ग्राम पंचायत से लगायत जिला प्रशासन स्तर तक होना चाहिए। जिला स्तर पर ही शिक्षानीति तैयार की जानी चाहिए। प्रत्येक जनपद में कम से कम दो विश्वविद्यालय अवश्य हों, ताकि प्रत्येक गरीब से गरीब नागरिक को समान रूप से गुणवत्तापरक शिक्षा सुलभ हो सके। इस तरह उन प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं पर जहाँ गरीब उच्चशिक्षा नहीं ग्रहण कर सकता, लगाम लगायी जा सकती है।